यहां की स्वयं प्राकट्य विग्रह के बारे में मशहूर है कि जो भी यहां पर आता है निराश नही जाता है। इस विग्रह के प्राकट्य के बारे में पूछे जाने पर झाड़ी हनुमान मंदिर नौहझील के महंत त्यागी रामरतन दास ने बताया कि सम्वत् 998 विक्रमी ज्येष्ठ शुक्ल दसवीं के दिन पैकोली परिवार के पयहारी जी के शिष्य परमानन्ददास एवं वनखंडी दास ने ब्रज चौरासी कोस की यात्रा के दौरान नौहझील से दो किलोमीटर दूर वर्तमान झाड़ी हनुमान मंदिर के पास जब विश्राम किया तो परमानन्ददास को आभास हुआ कि उन्हें कोई आवाज दे रहा है। उन्होंने ध्यान लगाकर सुना तो आवाज आई परमानन्द मैं यहां झाड़ी में मिट्टी की ठेकरी के नीचे विराजमान हूं। तुम मिट्टी हटाकर मेरा दर्शन करो एवं चोला चढ़ाकर प्रसाद वितरित करो तभी तुम्हारी ब्रज चौरासी कोस परिक्रमा पूरी होगी।
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महंतजी ने बताया कि इसके बाद परमानन्ददास ने अन्य जमाती सन्तों के साथ मिट्टी की ठेकरी को चिमटे से खोदना शुरू किया तो उन्हें एक दिव्य रोशनी एवं गेहुंए रंग की संगमरमर की प्रतिमा के दर्शन हुए। इसके बाद संतों द्वारा आसपास की झाड़ी काटकर एक बड़ा चबूतरा बनाया गया। रात्रि जागरण, संकीर्तन, भंडारा किया गया और विगृह की प्रतिष्ठा कर फिर दोनों संत अपनी चौरासी कोस की परिक्रमा पूरी करने के लिए चल दिए।उन्होंने बताया कि हर साल ब्रज चौरासी कोस की परिक्रमा करने वाले दोनो संतों को इस बार अनूठा अनुभव यह हुआ कि उन्हें परिक्रमा में जरा भी थकावट नही आई । परिक्रमा पूरी करने के बाद दोनो संत परमानन्ददास एवं वनखंडीदास नौहझील आकर झाड़ी हनुमान मंदिर क्षेत्र में कुटिया बनाकर रहने लगे।
उधर, वनखंडी महाराज द्बारा नौहझील में आबादी के निकट वनखंडी महादेव का मंदिर बनाकर महादेव जी की प्राण प्रतिष्ठा की गई। इसके कुछ समय बाद जब परमानन्ददास कुछ संतों के साथ जम्मू कश्मीर चले गए तो सन 1600 व 1700 के बीच मुस्लिम कैरपंथियों द्वारा हनुमान जी के श्रीविग्रह को खंडित करने का असफल प्रयास किया गया । कालान्तर में जनता की मांग व अंग्रेज कलेक्टर के आदेश से झाड़ी हनुमान की सेवा ब्राह्मणों एवं साधु संतों ने शुरू कर दी तब से एक न एक बैरागी साधू मंदिर पर आकर सेवा पूजा कर रहा है।
महंत रामरतनदास ने बताया कि 1965 में देदना गांव के छगनलाल केवट ने साधु की दीक्षा लेकर मंदिर में रहना शुरू कर दिया था। उन्ही के प्रयास से यहां राम मंदिर, महादेव व अन्य देवी देवताओं के मंदिरों का निर्माण हुआ। सन 1986 में उन्होंने अष्टकुंडीय यज्ञ भी कराया था कितु इसमें उनका काफी शरीर जल गया था और बाद में उनका प्राणांत हो गया। वर्तमान में यहां की व्यवस्था सुदामाकुटी वृन्दावन के महंत सुतीक्ष्णदास द्बारा संचालित हो रही है।
कार्यक्रम के विशेष सहयोगी उत्तर प्रदेश सरकार के पूर्व शिक्षा मंत्री श्यामसुन्दर शर्मा ने बताया कि 15 जून से प्रारंभ हुए प्राकट्योत्सव कार्यक्रम के अन्तर्गत पहले दिन नौहझील से झाड़ी हनुमान तक भागवत की विशाल शोभायात्रा निकाली जाएगी तथा 16 जून से भागवताचार्य आचार्य विभू महराज द्बारा श्रीमदभागवत कथा का पान अपरान्ह दो बजे से भक्तों को कराया जाएगा। उन्होंने बताया कि कथा के अन्तर्गत 19 जून को नन्दोत्सव एवं 20 जून को गोवर्धन पूजा का आयोजन होगा। कथा का समापन 22 जून को होगा तथा 23 जून को विशेष प्रसाद का भंडारा होगा। एक सप्ताह तक मंदिर के चारों ओर मेला सा लग जाता है क्योंकि इस मंदिर की पहचान मनोकामना पूरा करने वाले मंदिर के रूप में बन चुकी है।-एजेंसी
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